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अरविन्दजी, आप मर क्यों नहीं जाते ?-Jagran Junction Forum

बोलती चुप..
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Arvind

प्रिय अरविंद केजरीवालजी,

‘आप मर क्यों नहीं जाते’ क्योंकि अब वही रास्ता शेष है। ये क्या छोटी-मोटी बाइट्स कि शरीर की गलन, खून में जलन बढ़ रही है, आंते सिकुड़ रही हैं। अरे भाई निर्भया की तो  आंते भी नहीं बची थीं तब भी हमें कोई बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ा था, निर्भया मर गयी तब हम थोड़ा पसीजे और फिर हमारा पसीना भी हमने घोषणाओं के रुमाल से पोंछ लिया। और आप हो कि मरते ही नहीं हो। आप हमें ये बताओ कि ये सब कर किसके लिए रहे हो? बहुत लोगों से पूछो तो कहते हैं कि हां सुना है कि अनशन कर रहे हैं, कोई कहता है उपवास कर रहे हैं और कोई कोई तो कहता है कि राजनीति कर रहे हैं । क्या आप ये सब सुनने के लिए उपवास पर हो। अच्छा याद आया क्यों कर रहे  हो उपवास ? बताया किसी ने वो बिजली और पानी के बिल के बढऩे के खिलाफ ये सब कर रहे हैं। अगर सच में ऐसा है तो आप बेकार परेशान हो रहे हो, ये भी कोई मुद्दा है? ऐसा कितनी बार हुआ है कि बिल ज्यादा आया, बिजली दफ्तर गए और अपने-अपने हिसाब से बिल को एडजस्ट करवाया और हो गया काम। आप तो जानते हो अब बिजली के बिना काम भी कहां चलता है। क्या है कि चाहे दो पैसे लग जाएं पर रात के चुइंगम सीरियल्स , सनसनीखेज न्यूज, अश्लील चुटकुलों का जो डोज है उससे ‘कॉम्प्रो’ बिल्कुल नहीं, अरे एक ही तो माध्यम है जिससे अलग-अलग उम्रों के लोग एक हमउम्र फेमली बन जाते हैं, कोई पर्दा नहीं, कोई लिहाज नहीं। वैसे आपने बताया है कि आप तो बिजली के तार खुद जोड़ लो, पर अरविंद भाई हर कोई तो वो भी नहीं कर सकता। क्यों मत पूछिएगा? अरे कैमरे के सामने बिजली का तार पकडऩा और कॉलीनों के जाले लगे हुए बोक्स को खोलकर १०० मीटरों में से अपना तार ढूंढना और उसे अपने पेन पकडऩे वाले और कीबोर्ड पर फड़कने वाले कांपते हाथों से जोडऩा इतना भी आसान नहीं होता। और चलो जोड़ भी लिया तो सुना है पुलिस आ सकती है। वही पुलिस जिसके हाथ आम आदमी को पकडऩे के लिए बहुत लम्बे होते हैं और मजबूत भी जो ईमानदार और आम होने की विशेषता को बहुत जल्दी भांप लेते हैं और कुछ ऐसी मेहमाननवाजी करते हैं जिसकी कल्पना मात्र से मन कांप जाता है। हां हमें याद है कि आपने कहा है कि अगर पुलिस पकड़ ले तो डरने की कोई बात नहीं आम आदमी पार्टी की सरकार बनने पर सबको छोड़ दिया जाएगा, लेकिन भाई इतना ‘पेशेंस’, इतना त्याग कहां से लायें। आप आयेंगे हमें छुड़ाएंगे, तब तक कितना कुछ हम और हमारे बच्चे मिस कर देंगे और फिर हम सबकुछ उनके लिए तो कर रहे हैं और अगर हम जेल चले जायें और बीवी बच्चे एंजॉय ही न कर पायें तो हम ये बदलाव-अदलाव कर ही क्यों रहे हैं? आप समझ रहे हैं न। नहीं, देखिए आपकी आप पार्टी कब आएगी? कब सब छूटेंगे? तब तक बच्चों के कितने टीवी रियल्टी शोज के ऑडिशन की डेट निकल जाएगी जिनके लिए हम दिन रात बच्चों पर मेहनत कर रहे हैं। अब हमारा मोनू गणित में ठीक नहीं लेकिन कमाल झूठ बोलता है, पक्का ड्रामेबाज है, किसी ने सजेस्ट किया है कि उसे ड्रामेबाज के अगले सीजल के लिए झूठ बोलने की प्रोपर प्रेक्टिस करवानी चाहिए। अब आपके चक्कर में हम जेल गए तो उसका तो भविष्य खराब हो जाएगा न। इन शोर्ट  जेल से लौटने तक हम कितने रियलिटी शो और उनसे सीखी गालियां आदि मिस कर देंगे, कितनी अद्भुत, रोचक, एक्साइटिंग फिल्में नहीं देख पाएंगे जिनसे हमें और हमारे बच्चों को बहुत कुछ सीखने मिलता है, कितने बलात्कार के केसेस पर हकीकत बयां करते क्राइम पेट्रोल के एपिसोड नहीं देख पाएंगे जिनसे हमारी बलात्कारी की मानसिकता को समझने की क्षमता बढ़ती है, कितने सास-बहू सीरियल्स नहीं  देख पाएंगे जिनसे हमारी रिश्तों में आस्था और उनके बीच के द्वंदों को समझने की क्षमता बढ़ती है। और सबसे बढ़कर यदि हम ही चले गए तो आप जो ये अनशन वगैरह कर रहे हो इसको फेसबुक पर टेग कौन करेगा और लाइक, शेयर, ट्वीट, प्रतिक्रिया, पुन: प्रतिक्रिया….कौन करेगा? अरे एक पूरा नया युग  सोशन मीडिया पर रचने से हम वंचित रह जायेंगे। तो अरविंद भाई हमने तो सोचा है कि पड़ोस में १०२ नं. में रहने वाले भैया जो बिजली विभाग में हैं पिछली बार भी उन्होंने ही एडजस्टमेंट कराया था तो उन्हें ही बोल के अपने बिल का कुछ करा लेते हैं। और एक बात बतायें, उनके पास तो मीटर में कुछ सेटिंग करवाने का भी आइडिया है, उन्होंने सजेस्ट भी किया था मगर पिछली बार आपका वो अन्ना टोपी वाला आंदोलन चल रहा था तो जोश में थोड़ी ईमानदारी हम में भी जिंदा हो गई और उसके चक्कर में हमने वो सेटिंग नहीं करवाई। पर इस बार सोच रहे हैं कि वही करवा लेते हैं। आप कहो तो आपके लिए भी ऐसी ही कोई व्यवस्था करवा देते हैं। ऐसा कुछ क्रियेटिव करवाकर और इसका आइडिया सबको देकर आप बिजली पानी के बिल जल्दी कम करवा सकते हो। आप गलत मत समझो हमें, हम मान रहे हैं कि आप बहुत ईमानदार हो और हमारे लिए, हमारे देश के लिए कुछ करना चाहते हो और इस नाते आपको हमारा ये आईडिया तो समझ आने से रहा। तब यदि आखिरी आइडिया समझ नहीं आ रहा है और आपको भगतसिंह बनना ही है तो मरना ही एक मात्र ऑप्शन रह जाता है। क्योंकि उससे कम में कोई नहीं मानने वाला? आप खुद ही सोचो खुद भगतसिंह के वक्त में उनके मरे बिना कुछ हुआ था क्या? तो अब तो वक्त कितना आगे बढ़ गया है। अब तो हमें अवेयरनेस के लिए दिल को हिलाने वाली फोटो, विडियों वगैरह भी चाहिए होती हैं। आप तो इतने दिनों में कैमरा फ्रेन्डली हो ही गए हो और समझते हो कि मीडिया भाईयों की भी कितनी मजबूरियां हैं। आप मरोगे तो उन्हें भी कुछ नई बाइट्स मिलेंगी। आपकी देह जो अचानक आपसे भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जायेगी के कई एंगल से फोटो लिये जाएंगे, विडिया बनेगा। आपके सारे भाषण, प्रेस कॉन्फ्रेंस, हां आपकी किताब कितना कुछ बेकार हो रहा है वो सब पुन: जीवित हो जाएगा। टीवी एंकर्स में नया जोश होगा हेडिंग्स बनाने का, नये सवाल पूछने का। ”भगतसिंह की राह पर एक और शहीद”। डॉक्टर से पूछा जाएगा कि ठीक है डॉक्टर साहब उपवास था फिर भी कुछ शायद खाने में आ गया हो या फिर हवा के माध्यम से जहर दिया गया हो? आखिरी समय में शुगर लेवल क्या था? क्या ये अपने आप बुलाई मौत थी ?  सरकार से सीबीआई जांच की माँग उठेगी। सरकार थोड़ा हिचकिचाएगी सीबीआई, अरे नहीं वो तो अभी गठवंधन सदस्यों की ब्लेकमेंलिग वाले प्रोजेक्ट पर लगी हुई है। एक कमाल की स्टोरी तैयार होगी और आप की इस शहादत पर टेग, लाइक, शेयर का दौर चलेगा। आज सब देख रहे हैं कि आप मर रहे हो लेकिन कल फिर भी सब यही कहेंगे कि अरविंद मर रहे थे और किसी ने भी देखा। कोई कुछ नहीं बोला। भाई मर जाओ, मरोगे तो थोड़ा तो शोर होगा। भाई मर जाओ तो शायद हमें भी थोड़ा दर्द होगा। अरे तुम मरोगे तो शायद हम थोड़ा जिंदा हो जाएं क्योंकि अभी तो हम सब मरे हुए हैं।
आपके शुभचिंतक
सभी मृत हृदय
देवेश शर्मा

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